Saturday, June 1, 2024

ग़ज़ल

वो गर सख़्त ज़ख्मी मेरा दिल न करता ।।

तो पी-पीके मैं ख़ुद को ग़ाफ़िल न करता ।।

जो चेहरा करे उसका उतना उजाला ,

क़सम से कभी माह ए कामिल न करता ।।

हमेशा बनाता वो राई को पर्वत ,

कभी भी किसी ताड़ को तिल न करता ।।

वो कह देता लाइक़ बनूॅं उसके तो क्या ,

मैं उसके लिए ख़ुद को क़ाबिल न करता ?

किसी से मोहब्बत हुई ही कहाॅं थी ,

वगरना मैं क्या उसको हासिल न करता ?

अगर काम का उसके होता न मैं तो ,

मुझे ज़िन्दगी में वो शामिल न करता ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 


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