Wednesday, March 30, 2016

मुक्तक : 819 - कोयल की कूक



कोयल की कूक कपि की , किट-किट भी मुझमें है ॥
मुझमें धड़ाम भी तो , चिट-चिट भी मुझमें है ॥
किरदार से सुनो हूँ , शफ़्फाक हंस मैं ,
हालात के मुताबिक़ , गिरगिट भी मुझमें है ॥
( किरदार = चरित्र , शफ़्फाक = उजला , हालात= परिस्थिति  )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...