Wednesday, March 2, 2016

मुक्तक : 812 - कब मिटाती हैं मुझे ?



ग़मज़दा हरगिज़ नहीं ये मुझको करतीं शाद हैं ॥
कब मिटातींं हैं मुझे ? करतीं ये बस आबाद हैं ॥
कौन कहता है कि मेरा रहनुमा कोई नहीं ?
मुझको मेरी ठोकरें सबसे बड़ी उस्ताद हैं ॥
( शाद=प्रसन्न ,रहनुमा=पथप्रदर्शक ,उस्ताद=गुरु )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...