Monday, March 21, 2016

मुक्तक : 816 - जीर्ण - शीर्ण है



भग्न है जीर्ण - शीर्ण है निपट निरालय है ॥
मन मेरा क्या है एक दुःख का संग्रहालय है ॥
कष्ट की खाई का कहीं पे इसमें है डेरा ,
इसमें पीड़ा का बस रहा कहीं हिमालय है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...