एक तूने क्या दिया धोख़ा मुझे ?
दोस्त
सब लगने लगे ख़तरा मुझे ॥
मैंने दी सौग़ात में बंदूक तुझको ,
तूने
गोली से दिया उड़वा मुझे ॥
मैं
बढ़ाता ही रहा शुह्रत तेरी ,
और
तू करता रहा रुस्वा मुझे ॥
तुझ
तलक आने को मैं मरता रहा ,
और
तू करता रहा चलता मुझे ॥
सब
दिया पर क्या दिया कुछ ना दिया ,
कुछ
न देता सिर्फ़ दिल देता मुझे ॥
क़र्ज़
जो तुझको दिये ले क़र्ज़ ख़ुद ,
माँगता
हूँ खा तरस लौटा मुझे ॥
हो
चुकी ज़ुल्मो सितम की इंतिहा ,
इक
करम कर ज़ह्र ला पिलवा मुझे ॥
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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