Friday, March 25, 2016

181 : ग़ज़ल - ज़हर ला पिलवा



एक तूने क्या दिया धोख़ा मुझे ?
दोस्त सब लगने लगे ख़तरा मुझे ॥
मैंने दी सौग़ात में बंदूक तुझको ,
तूने गोली से दिया उड़वा मुझे ॥
मैं बढ़ाता ही रहा शुह्रत तेरी ,
और तू करता रहा रुस्वा मुझे ॥
तुझ तलक आने को मैं मरता रहा ,
और तू करता रहा चलता मुझे ॥
सब दिया पर क्या दिया कुछ ना दिया ,
कुछ न देता सिर्फ़ दिल देता मुझे ॥
क़र्ज़ जो तुझको दिये ले क़र्ज़ ख़ुद ,
माँगता हूँ खा तरस लौटा मुझे ॥
हो चुकी ज़ुल्मो सितम की इंतिहा ,
इक करम कर ज़ह्र ला पिलवा मुझे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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