मैं हूँ विरह मधुमास नहीं ॥
तड़पन
हूँ नट , रास नहीं ॥
मुझको
दुःख में पीर उठे ,
हँसने
का अभ्यास नहीं ॥
उनके
बिन जीना _मरना ,
क्यों
उनको आभास नहीं ?
उनका
हर आदेश सुनूँ ,
पर
मैं उनका दास नहीं ॥
दिखने
में तो हैं निकट -निकट ,
दूर
- दूर तक पास नहीं ॥
भव्य
हवेली तो हैं वो ,
गेह
नहीं आवास नहीं ॥
इष्ट
हैं वो मेरे विशिष्ट ,
मैं
उनका कुछ ख़ास नहीं ॥
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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