Monday, March 7, 2016

मुक्तक : 814 - नर्म बिस्तर पर


नर्म बिस्तर पर बदलते करवटें रातें हुईं ॥
कहने को उनसे कई लंबी मुलाकातें हुईं ॥
कब बुझाने प्यास को या सींचने के वास्ते ?
सिर्फ़ सैलाबों के मक़सद से ही बरसातें हुईं ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...