पैर नीचे की बस ज़मीं को पूरा
का पूरा ,
सर की छत आस्माँ को दाँव
पर लगाया है ॥
ज़िंदा रहने को लोग क्या नहीं
किया करते ?
हमने मरने को जाँ को दाँव
पर लगाया है ॥
ठीक है ये या है ग़लत ये रब
ही जाने पर
इतना एहसास है कि हमने अपनी
मंज़िल को ,
दाँव पे ख़ुद को तो लगाया
ही लगाया सँग –
बेगुनह कारवाँ को दाँव पर
लगाया है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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