मूर्ति मन मंदिर में मेरे
माप की बैठी रही ॥
चाहता था जैसा मैं उस नाप
की बैठी रही ॥
पूछते हो किसकी है वह ? और किसकी हो सके ?
आप की बस आप की बस आप की
बैठी रही ॥
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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