Tuesday, February 16, 2016

मुक्तक : 808 - धूल - मिट्टी की जगह......




धूल - मिट्टी की जगह सीम या ज़र हो जाता ॥
तुच्छ झींगे से मगरमच्छ ज़बर हो जाता ॥
ख़ुद को महसूस हमेशा ही तो नाचीज़ किया ,
अपने कुछ होने का एहसास अगर हो जाता ॥
( सीम या ज़र = सोना या चाँदी , ज़बर = शक्तिशाली )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...