Wednesday, February 10, 2016

मुक्तक : 806 - लिबास



हमने ज्यों ही लिबास पहना था शराफ़त का ,
दुनिया बदमाशियों पे हो गई उतारू सब ॥
हमने ज्यों ही उतारा मैक़शी के दामन को ,
लोग पीने लगे बग़ैर प्यास दारू सब ॥
उनको कहते हैं लोग शहर का बड़ा नेता -
सिर पे टोपी लपेटते गले में वो मफ़लर ,
हम जो सैण्डल पहन के आज पहुँचे क्या दफ़्तर ,
हमको कहने लगे फटाक से गँवारू सब !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...