Sunday, January 31, 2016

मुक्तक : 802 - नग्नाटक ॥




दे चुका जीवन का मैं हर मूल्य हर भाटक ॥
जबकि मुझ पर खुल रहा अब मृत्यु का फाटक ॥
वस्त्र - आभूषण से रहता था लदा कल तक ,
आज गलियों में मैं घूमूँ बनके नग्नाटक ॥
( भाटक=किराया ,फाटक=द्वार ,नग्नाटक=सदा नंगा घूमने वाला साधु )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...