जो दिल में मेरे ग़म भरा है कूट-कूट
के ॥
रो-रो
उसे निकाल दूँगा फूट-फूट
के ॥1।।
मेरा
तो क्या किसी का हो सके न
जो कभी ,
मेरा
उसी से दिल लगा रे टूट-टूट
के ॥2।।
मुश्किल से हाथ आए थे जो मुझको
काट-काट ,
सब फड़फड़ा
उड़े वो तोते छूट-छूट
के ॥3।।
जो-जो
जमा किया था बैरी सब तो
ले गया ,
कुछ माँग-माँग
के तो कुछ को लूट-लूट
के ॥4।।
मत पूछ
जबसे मैं जुड़ा हूँ उससे किस क़दर ,
करता
हूँ एक तरफ़ा प्यार टूट-टूट
के ?5।।
कब तक
जिऊँगा रोज़-रोज़ इस तरह अगर ,
याद उसकी आएगी गले को घूट-घूट
के ?6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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