Sunday, January 3, 2016

ग़ज़ल : 177 - छूट-छूट के ॥

      
    

    जो दिल में मेरे ग़म भरा है कूट-कूट के
     रो-रो उसे निकाल दूँगा फूट-फूट के ॥1।।
     मेरा तो क्या किसी का हो सके न जो कभी ,
     मेरा उसी से दिल लगा रे टूट-टूट के ॥2।।
     मुश्किल से हाथ आए थे जो मुझको काट-काट ,
     सब फड़फड़ा उड़े वो तोते छूट-छूट के ॥3।।
     जो-जो जमा किया था बैरी सब तो ले गया ,
     कुछ माँग-माँग के तो कुछ को लूट-लूट के ॥4।।
     मत पूछ जबसे मैं जुड़ा हूँ उससे किस क़दर ,
     करता हूँ एक तरफ़ा प्यार टूट-टूट के ?5।।
     कब तक जिऊँगा रोज़-रोज़ इस तरह अगर ,
     याद उसकी आएगी गले को घूट-घूट के ?6।।
              -डॉ. हीरालाल प्रजापति

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