Wednesday, January 20, 2016

मुक्तक : 799 - क़िस्मत छलेगी प्रिये ॥






 आज फिर मुझको क़िस्मत छलेगी प्रिये ॥
शुष्क वस्त्रों को गीला करेगी प्रिये ॥
भूल मैं जो गया आज छतरी कहीं ,
आज बरसात होकर रहेगी प्रिये ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति



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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...