Monday, January 4, 2016

ग़ज़ल : 178 - नाच मटक-टूट गए ॥



तुम जनाज़ों को काँधा देते सटक-टूट गए ।।
हम बरातों में नाच-नाच मटक-टूट गए ।।1।।
हम जो लोहा थे मेरी जान वो शीशे की तरह ,
तेरे जाने के बाद फूट चटक-टूट गए ।।2।।
मंज़िलें तेरी रहनुमाई में जो की थीं फतह ,
अपनी अगुवाई में वो भूल भटक-टूट गए ।।3।।
भूलकर भी कभी नहीं थे जो बीमार हुए ,
इश्क़ में पड़ बुरी तरह से झटक-टूट गए ।।4।।
मुँह से गाली ख़ुद अपने बच्चों के सुन अपने लिए ,
सर को पत्थर पे नारियल सा पटक-टूट गए ।।5।।
पूरा हाथी निकलने तक वो सलामत थे मगर ,
इक अकेली गई जो पूँछ अटक-टूट गए ।।6।।
हाँ , ज़मीं पर भी पैर रखने जगह जब न मिली ,
लोग चमगादड़ों के जैसे लटक-टूट गए ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...