जब प्यास से गर्मी में तड़पूँ
,
तब शीतल-शीतल जल देना ॥
तुम भेंट के इच्छुक हो तो
मुझे ,
ठंडों में गरम कम्बल देना
॥
उपहार वही मन भाता है जो
,
हमको आवश्यक होता है ;
अतएव मेरी तुम चाह समझ -
वह आज नहीं तो कल देना ॥
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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