Friday, January 1, 2016

मुक्तक : 796 - उड़ते अपनी शान से ॥




आस्माँ पर सब परिंदे उड़ते अपनी शान से ॥
मछलियाँ पानी में तैरें इक अलग ही आन से ॥
दौड़ें , कूदें , नृत्य भी इंसान के हैं केंचुवी ,
चल सकेगा क्या कभी ये पूरे इत्मीनान से ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...