लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी
॥
दृष्टि में मेरी सदा रहता
है मुख उसका ।
और मुझको ताकते रहना है
सुख उसका ।
मैं भरी बरसात में भी यदि
पुकारूँ तो ,
छोड़कर सब मुझसे मिलने दौड़
आएगी ॥
लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी
॥
मैं उसे राई सा चाहूँ वो
पहाड़ों सा ।
मैं उसे डमरू सा वो चाहे
नगाड़ों सा ।
यदि करूँ उससे निवेदन एक
चुंबन का ,
वो मेरी बाहों में आकर झूल
जाएगी ॥
लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी
॥
गर्त में जब भी निराशा के
मैं फँस जाऊँ ।
ठोस दलदल में हताशा के मैं
धँस जाऊँ ।
तत्व की बातों से गीता ज्ञान
से बढ़कर ,
दे के ढाढस अंततः मुझको
बचाएगी ॥
लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी
॥
मुझमें जो भी त्रुटियाँ
हैं जो न्यूनताएँ हैं ।
जो भी है अल्पज्ञता जो मूर्खताएँ
हैं ।
सबसे ही अवगत है पर वो मारकर
ताने ,
हीनता का बोध ना मुझमें
जगाएगी ॥
लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी
॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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