Wednesday, July 13, 2016

मुक्तक : 851 - वक़्त-ए-आख़िर



वक़्त-ए-आख़िर सही रे एक बार ही मुझको ,
अपने सीने से तू लगा के माफ़ कर देना ।।
मेरी ख़ातिर जो तेरे दिल में मैल है तारी ,
कर के मुझको हलाल ख़ूँ से साफ़ कर देना ।।
झूठ बदनाम इस क़दर हुआ कि दुनिया को ,
अब न क़ाबिल बचा हूँ मुँह तलक दिखाने के ;
मुझ सरेआम बेलिबास को चले-चलते ,
इक कफ़न जानेजाँ सियह लिहाफ़ कर देना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...