Saturday, July 16, 2016

मत हँसें !



[ चित्र Google Search से साभार ] 

चाहकर भी हो न पाते छरहरे
हम पे क़ुदरत का है ये ज़ुल्मो-सितम ॥ 
हम पे हँसने की जगह करना दुआ

कैसे भी हो ? हो हमारा वज़्न कम ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...