Tuesday, July 5, 2016

मुक्तक : 848 - मग़्ज़ , दिल , अक़्ल




मग़्ज़ , दिल , अक़्ल सभी तीन बिछा रक्खे थे ॥
फूल चुन बाग़ से रंगीन बिछा रक्खे थे ॥
तेरे आने की हर इक राह पे मैंने डग-डग ,
अपनी आँखों के दो क़ालीन बिछा रक्खे थे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...