Sunday, April 17, 2016

मुक्तक : 822 - कागज से भी पतली




कागज से भी पतली या फिर ग्रंथों से भी मोटी से ॥
सागर से भी ज्यादा विस्तृत या बूँदोंं से छोटी से ॥
ताजा-ताजा अंगारे सी या हिम सी ठण्डी बासी ,
मिलवा दो प्राचीन क्षुधा को सद्यावश्यक रोटी से ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...