Wednesday, April 13, 2016

मुक्तक : 821 - अर्क-ए-गुलाब




पानी तलब करो मैं ला दूँ अर्क-ए-गुलाब ॥ 
गर तुम कहो तो इक सफ़्हा क्या लिख दूँ मैं किताब ॥ 
हसरत है तुम जो माँँगो दूँ वो उससे बढ़के तुमको ,
बदले में दो जो अपना सच्चा प्यार बेहिसाब ॥ 

-डॉ. हीरालाल प्रजापति



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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...