क्या
किसी भूले हुए ग़म की याद आने लगी ?
हँसते
- हँसते हुए क्यूँ आँख छलछलाने लगी ?
क्या
किसी भूले हुए..........................
आँख
कस - कस के भी लगाए लग न पाती है ।
रात
करवट बदल - बदल के बीत जाती है ।
लोग
खो जाते हैं सपनों में झपकते ही पलक ।
हमको
क्यूँ नींद भी इक ख़्वाब नज़र आती है ?
मुश्किलों
से ही हुआ था अभी आराम नसीब ,
कोई
तक्लीफ़ तभी फ़िर से सिर उठाने लगी ॥
क्या
किसी भूले हुए..........................
हमको
तपने का नहीं शौक़ फ़िर भी तपते हैं ।
धूप
अप्रेल - मई दोपहर की सहते हैं ।
हमको
शोलों से मुलाक़ात की कब चाह रहे ?
होके
मज़्बूर ही सूरज से हम लिपटते हैं ।
आज मौक़ा
जो मिला चाँद को छूने का हमें ,
चाँदनी
उसकी मैं हैराँ हूँ क्यूँ जलाने लगी ?
क्या
किसी भूले हुए..........................
हँसते
- हँसते हुए..............................
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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