कैसी भी हो ताती-बासी-पतली-मोटी ॥
भूख
में आँखों में नचती सिर्फ़ रोटी ॥
कान काटे है बड़े से भी बड़ों के ,
कान काटे है बड़े से भी बड़ों के ,
उम्रो
क़द में छोटे छोटों से वो छोटी ॥
मैं
फ़िदा था जिसपे वो जाने क्यों उसने ,
जड़ से
ही कटवा दी घुटनों तक की चोटी ॥
लोटता
है ज्यों गधा धरती पे मेरी ,
नर्म
बिस्तर पर न कबसे नींद लोटी ?
वो मुझे
इतना ज़रूरी है क़सम से ,
भूख
में कुत्ते को ज्यों होती है बोटी ॥
आजकल
साहिल पे भी हम डूबते हैं ,
पहले
तो इतनी न थी तक़्दीर खोटी ॥
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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