बात अच्छी भी आज
उसकी क्यों खली हमको ?
जिसकी बकबक भी कल तलक लगी भली हमको ॥
क्या हुआ आज कह रहा हमें वही काँटा ,
जो चुभन में भी बोलता था गुल-कली हमको ?
आज
कहता है क्यों हमें वो अद्ना , मामूली ,
कल
जो कहता फिरे था रात-दिन वली हमको ?
अपनी
आमद से तो रुकें बड़े-बड़े तूफ़ाँ ,
उसने
फिर किस बिना पे बोला खलबली हमको ?
भूल
बैठा है वो जो वाँ हमारी सूरत भी ,
याद
रहती है उसके घर की हर गली हमको ॥
उनका
दम घुट गया ग़ुबार देखते ही वाँ ,
गर्द
में जी यहाँ न कास तक चली हमको ॥
सबको
तलकर खिलाईं उसने पूरियाँ मीठी ,
सख़्त
मोटी औ' कच्ची रोट अधजली हमको ॥
यों
तो पहले भी कहते थे भला-बुरा लेकिन ,
आज
गाली ही बक दी वो बहुत खली हमको ॥
( वली = महात्मा , कास = खाँसी )
( वली = महात्मा , कास = खाँसी )
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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