■ चेतावनी : इस वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी समस्त रचनाएँ पूर्णतः मौलिक हैं एवं इन पर मेरा स्वत्वाधिकार एवं प्रतिलिप्याधिकार ℗ & © है अतः किसी भी रचना को मेरी लिखित अनुमति के बिना किसी भी माध्यम में किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना पूर्णतः ग़ैर क़ानूनी होगा । रचनाओं के साथ संलग्न चित्र स्वरचित / google search से साभार । -डॉ. हीरालाल प्रजापति
Wednesday, March 30, 2016
Tuesday, March 29, 2016
183 : ग़ज़ल - इश्क़ में सच हो फ़ना
इश्क़ में सच हो फ़ना हम शाद रहते हैं ॥
लोग तो यों ही हमें बरबाद कहते हैं ॥
आँसुओं का क्या है जब मर्ज़ी हो आँखों से ,
हो ख़ुशी तो भी लुढ़क गालों पे बहते हैं ॥
मार से कब टूटते इंसाँ हथौड़ों की ,
वो तो अपने प्यार की ठोकर से ढहते हैं ॥
जो हों ज़ख़्मी फूल से भी , वो भी पत्थर की ,
सख़्त मज्बूरी में हँस-हँस चोट सहते हैं ॥
सूर्य से भी हम कभी पाते थे ठंडक अब ,
हिज़्र में तेरे सनम चंदा से दहते हैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Monday, March 28, 2016
182 : ग़ज़ल - चोली - घाघरा
आज ख़ालीपन मेरा पूरा भरा है ॥
अब कहीं पीला नहीं है बस हरा है ॥
जिसपे मैं क़ुर्बान था आग़ाज़ से ही ,
वह भी आख़िरकार मुझ पर आ मरा है ॥
उसने मुझको तज के ग़ैर अपना लिया जब ,
मैंने भी अपना लिया तब दूसरा है ॥
कुछ न पाया मैंने की हासिल मोहब्बत ,
ज़िंदगी में इससे बढ़कर क्या धरा है ?
बन न पाया मैं सहारा उसका लेकिन ,
अब भी वो संबल है मेरा आसरा है ॥
आदमी जाँ को बचाने कुछ भी खा ले ,
शेर ने कब भूख में तृण को चरा है ?
भूल है मर्दों से कम उसको समझना ,
उसने बेशक़ पहना चोली - घाघरा है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Sunday, March 27, 2016
कविता : मैं हूँ विरह
मैं हूँ विरह मधुमास नहीं ॥
तड़पन
हूँ नट , रास नहीं ॥
मुझको
दुःख में पीर उठे ,
हँसने
का अभ्यास नहीं ॥
उनके
बिन जीना _मरना ,
क्यों
उनको आभास नहीं ?
उनका
हर आदेश सुनूँ ,
पर
मैं उनका दास नहीं ॥
दिखने
में तो हैं निकट -निकट ,
दूर
- दूर तक पास नहीं ॥
भव्य
हवेली तो हैं वो ,
गेह
नहीं आवास नहीं ॥
इष्ट
हैं वो मेरे विशिष्ट ,
मैं
उनका कुछ ख़ास नहीं ॥
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
Friday, March 25, 2016
181 : ग़ज़ल - ज़हर ला पिलवा
एक तूने क्या दिया धोख़ा मुझे ?
दोस्त
सब लगने लगे ख़तरा मुझे ॥
मैंने दी सौग़ात में बंदूक तुझको ,
तूने
गोली से दिया उड़वा मुझे ॥
मैं
बढ़ाता ही रहा शुह्रत तेरी ,
और
तू करता रहा रुस्वा मुझे ॥
तुझ
तलक आने को मैं मरता रहा ,
और
तू करता रहा चलता मुझे ॥
सब
दिया पर क्या दिया कुछ ना दिया ,
कुछ
न देता सिर्फ़ दिल देता मुझे ॥
क़र्ज़
जो तुझको दिये ले क़र्ज़ ख़ुद ,
माँगता
हूँ खा तरस लौटा मुझे ॥
हो
चुकी ज़ुल्मो सितम की इंतिहा ,
इक
करम कर ज़ह्र ला पिलवा मुझे ॥
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
Thursday, March 24, 2016
Wednesday, March 23, 2016
Monday, March 21, 2016
Saturday, March 19, 2016
विश्वासघात
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Sunday, March 13, 2016
Monday, March 7, 2016
मुक्तक : 814 - नर्म बिस्तर पर
नर्म बिस्तर पर बदलते करवटें
रातें हुईं ॥
कहने को उनसे कई लंबी मुलाकातें
हुईं ॥
कब बुझाने प्यास को या सींचने
के वास्ते ?
सिर्फ़ सैलाबों के मक़सद से
ही बरसातें हुईं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Saturday, March 5, 2016
Thursday, March 3, 2016
ग़ज़ल : 180 - क्यों मैं सोचूँ ?
क्यों मैं सोचूँ दौर मेरा थम गया है ?
खौलता लोहू रगों में जम गया है ॥
खिलखिलाते उठ रहे हैं सब वहाँ से ,
जो भी आया वो यहाँ से नम गया है ॥
इक शराबी से ही जाना राज़ था ये ,
मैक़शी से कब किसी का ग़म गया है ?
चोरियाँ चुपचाप ही करते हैं सब ही ,
दिल चुराकर वो मेरा छम-छम गया है ॥
इसमें क्या हैरानगी की बात जो ,
शह्र में जाकर गँवार इक रम गया है ?
उसका जीने की तमन्ना में ही सचमुच ,
जितना भी बाक़ी बचा था दम गया है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Wednesday, March 2, 2016
Subscribe to:
Posts (Atom)
मुक्तक : 948 - अदम आबाद
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
