Thursday, September 18, 2014

मुक्तक : 604 - निपट गंजों के लिए



चाँद से गंजों को काले विग घने ॥
दंतहीनों वास्ते डेंचर बने ॥
उड़ नहीं सकते मगर हों पीठ पर ,
पर शुतुरमुर्गों के शायद देखने ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

Unknown said...


बहुत सुंदर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok' जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...