Saturday, September 13, 2014

मुक्तक : 597 - यहाँ क्या और वहाँ क्या


यहाँ क्या और वहाँ क्या हर जगह पर याद आता है ॥
नहीं रुक - रुक के वो मुझको निरंतर याद आता है ॥
रहा करते थे जब उसमें तब उसकी क़द्र ना जानी ,
कि घर से दूर होकर अब बहुत घर याद आता है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...