Tuesday, September 16, 2014

मुक्तक : 601 - रातें हों, दिन हों



रातें हों, दिन हों, शामें हों या दोपहर, सवेरे ॥
डाले रखते हैं मेरे घर मेहमाँ अक्सर डेरे ॥
रहने के अंदाज़ भी उनके बिलकुल ऐसे हैं सच ,
यूँ लगता है मैं हूँ मेहमाँ वो घर-मालिक मेरे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...