नहीं होता कमीनों में कमीनापन वो जो होता ,
ज़माने के चुनिंदा और मुट्ठी भर शरीफ़ों में ।।
जवानों में भी जो बातें अकेले में नहीं होतीं ,
तुम्हें मालूम क्या ? होतीं हैं क्या बातें ख़रीफ़ों में ।।
न लग जाए नज़र ; कितने ही ऐसा सोचकर अक्सर ;
ख़ुशी में भी दिखें यों ज्यों अभी बिजली गिरी उनपर ;
मैं दावा कर रहा हूॅं ; हाॅं ! भरा होता है बेहद ग़म ,
बला के मस्ख़रों में भी , कई यों ही ज़रीफ़ों में ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
( मस्ख़रा=काॅमेडियन/ख़रीफ़=बूढ़ा /ज़रीफ़=खुशमिज़ाज )
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