Saturday, August 24, 2024

मुक्तक

 











नहीं होता कमीनों में कमीनापन वो जो होता ,

ज़माने के चुनिंदा और मुट्ठी भर शरीफ़ों में ।।

जवानों में भी जो बातें अकेले में नहीं होतीं ,

तुम्हें मालूम क्या ? होतीं हैं क्या बातें ख़रीफ़ों में ।।

न लग जाए नज़र ; कितने ही ऐसा सोचकर अक्सर ;

ख़ुशी में भी दिखें यों ज्यों अभी बिजली गिरी उनपर ;

मैं दावा कर रहा हूॅं ; हाॅं ! भरा होता है बेहद ग़म ,

बला के मस्ख़रों में भी , कई यों ही ज़रीफ़ों में ।।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

( मस्ख़रा=काॅमेडियन/ख़रीफ़=बूढ़ा /ज़रीफ़=खुशमिज़ाज )


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