Sunday, August 4, 2024

ग़ज़ल

 

सभी के साथ में उस दिन , सताने वो भी आए थे ।।
हमें मक़्तूल से क़ातिल , बनाने वो भी आए थे ।।
न जाने क्यों ; मगर जो चाहते थे हम मरेंगे कब ?
हमारी लाश पर ऑंसू , बहाने वो भी आए थे ।।
कई दुश्मन हमें बर्बाद करने पर तुले थे पर ,
बदलकर भेस को अपने , मिटाने वो भी आए थे ।।
फ़क़त हम ही न पहुॅंचे थे क़रीब उनके न आने को ,
हमारे पास आकर फिर , न जाने वो भी आए थे ।।
हमारे जख़्मों पे दुनिया तो लाई थी नमक मलने ;
अरे ! मरहम की जा मिर्ची , लगाने वो भी आए थे ।।
हमारे दिल को भूना सबने मिलकर , ग़म न माशा भर ,
मलाल इसका है मन-मन भर , जलाने वो भी आए थे ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति





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