ताज़े को फेंक खाते हम लुत्फ़ लेके बासा ।।
बारिश में भीगते पर रखते हैं ख़ुद को प्यासा ।।
कोई कमी नहीं है , ये तो है अपनी मर्ज़ी ,
सब ख़ुद लुटाके फिरते हाथों में पकड़े कासा ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
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