मुझे भर भिगोने तू बारिश न आना ।।
ज़माने को भी तर-ब-तर करते जाना ।।
मुझे भी पता है तेरे दिल में मेरा ,
न था और न है और न होगा ठिकाना ।।
हो कितनी भी फ़ुर्सत अगर मैं बुलाऊॅं ,
न चाहे तू मुझको तो अब फिर न आना ।।
अभी तुझको पाने का सोचा नहीं है ,
यूॅं ही तुझको पा लूॅंगा गर मैंने ठाना ।।
तेरे वास्ते मुझको मुश्किल न होगा ,
अरे ! चाॅंद-तारों को भी तोड़ लाना ।।
उसे मारकर अब मेरी ज़िद है मुझको ,
ख़ुद अपने ही हाथों अभी ज़ह्र खाना ।।
उसे देखना भी गवारा नहीं अब ,
कभी आर्ज़ू थी उसी उसको पाना ।।
तुम्हीं ज़िंदगी थे तुम्हीं चल दिए अब ,
मुझे ख़ुद को मरने से होगा बचाना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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