Tuesday, July 23, 2024

ग़ज़ल

 











मुझे भर भिगोने तू बारिश न आना ।।

ज़माने को भी तर-ब-तर करते जाना ।।

मुझे भी पता है तेरे दिल में मेरा ,

न था और न है और न होगा ठिकाना ।।

हो कितनी भी फ़ुर्सत अगर मैं बुलाऊॅं ,

न चाहे तू मुझको तो अब फिर न आना ।।

अभी तुझको पाने का सोचा नहीं है ,

यूॅं ही तुझको पा लूॅंगा गर मैंने ठाना ।।

तेरे वास्ते मुझको मुश्किल न होगा ,

अरे ! चाॅंद-तारों को भी तोड़ लाना ।।

उसे मारकर अब मेरी ज़िद है मुझको ,

ख़ुद अपने ही हाथों अभी ज़ह्र खाना ।।

उसे देखना भी गवारा नहीं अब ,

कभी आर्ज़ू थी उसी उसको पाना ।।

तुम्हीं ज़िंदगी थे तुम्हीं चल दिए अब ,

मुझे ख़ुद को मरने से होगा बचाना ।।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...