Wednesday, August 21, 2024

ग़ज़ल

 











मेरा पागल हो ख़ुशी से झूम जाना हो ।।

जब भी रेगिस्तान में बारिश का आना हो ।।

वैसे चाहे कोई गाए या न गाए पर ,

हाॅं ! नहाते वक़्त सबका गुनगुनाना हो ।।

मैं ज़ुबाॅं अपनी न काटूॅं , होंठ भर सी लूॅं ,

जब किसी को कुछ नहीं मुझको बताना हो ।।

सर झुका चुप उनके आगे बैठ जाता बस ,

हाल ए दिल अपना उन्हें जब भी सुनाना हो ।।

मैं मुसीबत में नहीं लेता मदद उससे ,

मुझसे अपने दोस्त का कब आज़माना हो ?

लोग कहते हैं कि अक्सर टूट जाते हैं ,

इसलिए मुझसे न ख़्वाबों का सजाना हो ।।

राह चलते लूट लूॅं मैं ऑंख का काजल ,

लेकिन उनके दिल का मुझसे कब चुराना हो ?

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 


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