मेरा पागल हो ख़ुशी से झूम जाना हो ।।
जब भी रेगिस्तान में बारिश का आना हो ।।
वैसे चाहे कोई गाए या न गाए पर ,
हाॅं ! नहाते वक़्त सबका गुनगुनाना हो ।।
मैं ज़ुबाॅं अपनी न काटूॅं , होंठ भर सी लूॅं ,
जब किसी को कुछ नहीं मुझको बताना हो ।।
सर झुका चुप उनके आगे बैठ जाता बस ,
हाल ए दिल अपना उन्हें जब भी सुनाना हो ।।
मैं मुसीबत में नहीं लेता मदद उससे ,
मुझसे अपने दोस्त का कब आज़माना हो ?
लोग कहते हैं कि अक्सर टूट जाते हैं ,
इसलिए मुझसे न ख़्वाबों का सजाना हो ।।
राह चलते लूट लूॅं मैं ऑंख का काजल ,
लेकिन उनके दिल का मुझसे कब चुराना हो ?
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
No comments:
Post a Comment