Thursday, June 16, 2016

मुक्तक : 846 - बिजलियों की तड़प ॥



फिर से छूने की लगातार उँगलियों की तड़प ॥
देख दीदार की दिनरात पुतलियों की तड़प ॥
मिलके जबसे तू अँधेरों में खो गया है मेरी ,
जुस्तजू में है चमकदार बिजलियों की तड़प ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...