Monday, June 27, 2016

ग़ज़ल : 198 - तबले की तिरकिट-धा-धिन है ॥




चाँदी रात है , सोना दिन है ॥
दिल अपना नाख़ुश लेकिन है ॥
तेरे बिन जीना नामुमकिन ,
फिर भी जीना तेरे बिन है ॥
उससे क्या माँगें जो दाने ,
ना तोले देता गिन-गिन है ॥
कैसे चूमें-चाटें उसको ,
हमको आती जिससे घिन है ॥
बस पागल ही इस दुनिया में ,
दर्द में भी हँसता तासिन है ॥
मेरा पीछा वो मीठे पर ,
मक्खी सा करता भिन-भिन है ॥
मैं वीणा का पंचम स्वर वो ,
तबले की तिरकिट-धा-धिन है ॥
तन नाजुक है फूल सा उसका ,
पत्थर सा लेकिन बातिन है ॥
मैं तो बस बोगी ही बोगी ,
क़िस्मत ही मेरा इंजिन है ॥
( तासिन = जीवन पर्यंत , बातिन = मन , हृदय )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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