हमने इक ग़म क्या किया उनसे तलब ॥
छीन लीं उनने हमारी खुशियाँ सब ॥
चाहते थे वो चकोरे सा हमें ,
चाँद जैसे खूबसूरत हम थे जब ॥
कल लगे थे दुम सरीखे पीछे वो ,
इक गधे के सींग से ग़ायब हैं अब ?
वो ये कहते हैं किया कब याद हमें ,
हम ये कहते हैं कि भूले ही थे कब ?
उनपे कर बैठे थे दिल-ओ-जाँ निसार ,
थी कहाँ हममें समझ ? छोटे थे तब ॥
उनकी आँखें तो ज़ुबाँ से थीं बड़ी ,
क्या हुआ गर बंद रखते थे वो लब ?
दिल था सोना , रूह कोहेनूर थी ,
काश होता पुरकशिश तन का भी ढब !!
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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