Monday, September 7, 2015

मुक्तक : 762 - कच्चा चबाने मारा ॥


             
जिस वक़्त को बचाने की मैंने की क़वाइद,
उसने मुझे लिपटकर गर्दन दबाने मारा ।
जिसको बचा के जबड़े से मैं मगर के लाया ,
उसने मुझे चने सा कच्चा चबाने मारा ।।
तक़्दीर में ही मेरी थी इस क़दर ख़राबी ,
हैराँ तो होगे सुनकर लेकिन ये सच है मुझको,
मरते हैं लोग जिसको साँसों में भरने अपनी ,
उस सुब्हे जाँफ़िज़ा की बादे सबा ने मारा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...