Monday, September 28, 2015

मुक्तक : 767 - हिरन को हरा दूँ ॥



तेरे लिए निचोड़ तप्त रेत बता दूँ ॥
तू कह तो बर्फ जल को लंक जस ही जला दूँ ॥
हो जाए आज भी तू मेरी तो मैं क़सम से ,
लँगड़ा हूँ फिर भी दौड़कर हिरन को हरा दूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...