Thursday, September 10, 2015

मुक्तक : 763 - एक ही मक़सद




ज़िंदगी का एक ही मक़सद रखा ले लूँ मज़ा ॥
जिस तरह भी बन पड़े कर लूँ हर इक पूरी रज़ा ॥
लेकिन इस तक़्दीर ने भी ठान रक्खी थी अरे ,
वो इनामों की जगह देती रही चुन-चुन सज़ा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति




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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...