Monday, September 21, 2015

मुक्तक : 766 - छुरी वो निकली ॥



सचमुच बहुत बुरी वो , निकली तो अब करें क्या ?
जल नाँँह माधुरी वो , निकली तो अब करें क्या ?
सोचा था पुष्प कोमल , कोमल है वो अरे पर ,
काँटा , छुरा , छुरी वो , निकली तो अब करें क्या ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...