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Monday, September 28, 2015
Friday, September 25, 2015
Monday, September 21, 2015
Thursday, September 17, 2015
Wednesday, September 16, 2015
Thursday, September 10, 2015
मुक्तक : 763 - एक ही मक़सद
ज़िंदगी का एक ही मक़सद रखा ले लूँ मज़ा ॥
जिस तरह भी बन पड़े कर लूँ हर इक पूरी रज़ा ॥
लेकिन इस तक़्दीर ने भी ठान रक्खी थी अरे ,
वो इनामों की जगह देती रही चुन-चुन सज़ा ॥
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
Monday, September 7, 2015
मुक्तक : 762 - कच्चा चबाने मारा ॥
जिस वक़्त को बचाने की मैंने की क़वाइद,
उसने मुझे लिपटकर गर्दन दबाने मारा ।
जिसको बचा के जबड़े से मैं मगर के लाया ,
उसने मुझे चने सा कच्चा चबाने मारा ।।
तक़्दीर में ही मेरी थी इस क़दर ख़राबी ,
हैराँ तो होगे सुनकर लेकिन ये सच है मुझको,
मरते हैं लोग जिसको साँसों में भरने अपनी ,
उस सुब्हे जाँफ़िज़ा की बादे सबा ने मारा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Friday, September 4, 2015
Wednesday, September 2, 2015
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मुक्तक : 948 - अदम आबाद
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
