उसको जो कोयले की इक खान है ; सँभलना ।।
आँखों में नींद भर उस पर चल दिए हो सोने ,
बिस्तर सा वो नुकीली चट्टान है ; सँभलना ।।
अंदर है उसमें ज़िंदा ज्वालामुखी धधकता ,
लेकिन ज़ुबाँ से उसके ठंडा शहद टपकता ,
इक मश्वरा है उससे मत दोस्ती रखो सच ,
तुम झोंपड़ी हो वो इक तूफ़ान है ; सँभलना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-10-2019) को "बापू जी का जन्मदिन" (चर्चा अंक- 3476) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत सुंदर सृजन।
बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय
सादर
धन्यवाद । अनिता सैनी जी ।
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