Monday, September 16, 2019

मुक्तक : 920 - चाहत


तुम्हीं एक से जिस्म आहत कहाँ है ?
किसी से भी इस दिल को राहत कहाँ है ?
अगर ख़ुश नहीं हूँ तो ये मत समझना ,
अभी मुझमें हँसने की चाहत कहाँ है ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-09-2019) को    "मोदी स्वयं सुबूत"    (चर्चा अंक- 3462)    पर भी होगी। --
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
 --
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । मयंक जी ।

मन की वीणा said...

सर बहुत उम्दा लेखन ।
पर पढ़ ने में बहुत मुश्किल हो रही है कलर हल्का करें कृपया।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...