Monday, July 3, 2017

*मुक्त-मुक्तक : 872 - इक भूल.........



उनकी सब हरकतें यों थीं बेजा मगर ,
हम उन्हे हँस के माक़ूल कहते रहे ॥
बंद कर आँखें उनके गुनाहों को भी ,
छोटे बच्चों सी इक भूल कहते रहे ॥
उनके कंकड़ को नग ;
मक्खी मच्छर को खग ;
उनकी ख़स को शजर ;
धूल - मिट्टी को ज़र ;
उनको रखना था ख़ुश इसलिए झूठ ही ,
उनके काँटों को भी फूल कहते रहे ॥
(हरकत=चाल ,बेजा=अनुचित ,माक़ूल=उचित ,नग=रत्न ,खग=पक्षी , ख़स=सूखी घास ,शजर=वृक्ष ,ज़र=स्वर्ण )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...