उनकी सब हरकतें यों थीं
बेजा मगर ,
हम उन्हे हँस के माक़ूल कहते
रहे ॥
बंद कर आँखें उनके गुनाहों
को भी ,
छोटे बच्चों सी इक भूल कहते
रहे ॥
उनके कंकड़ को नग ;
मक्खी मच्छर को खग ;
उनकी ख़स को शजर ;
धूल - मिट्टी को ज़र ;
उनको रखना था ख़ुश इसलिए
झूठ ही ,
उनके काँटों को भी फूल कहते
रहे ॥
(हरकत=चाल ,बेजा=अनुचित ,माक़ूल=उचित ,नग=रत्न ,खग=पक्षी , ख़स=सूखी घास
,शजर=वृक्ष ,ज़र=स्वर्ण )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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