बारिश में बहते नालों ख़ुद को
नदी न समझो ।।
लम्हा तलक नहीं तुम ख़ुद को
सदी न समझो ।।1।।
अच्छे के वास्ते गर हो जाए
कुछ बुरा भी ,
बेहतर है उस ख़राबी को फिर बदी
न समझो ।।2।।
दिखने में मुझसा अहमक़ बेशक़
नहीं मिलेगा ,
लेकिन दिमाग़ से मुझ को गावदी
न समझो ।।3।।
पौधा हूँ मैं धतूरे का भूलकर
भी मुझको ,
अंगूर गुच्छ वाली लतिका लदी
न समझो ।।4।।
जिसको वरूँगी मेरा पति बस वही
रहेगा ,
सीता हूँ मैं मुझे तुम वह द्रोपदी
न समझो ।।5।।
(बदी = पाप , अहमक़ = भोंदू , गावदी
= बेवकूफ़ )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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