मुट्ठी में बारिशों का सब
आब रोक लेना ॥
आँखों में आँसुओं का सैलाब
रोक लेना ॥
जब तक कि मैं न आऊँ तुम
रात में अँधेरी ,
सूरज को मात देता महताब
रोक लेना ॥
हर चीज़ छिनने देना याँ तक
कि मेरी जाँ भी ,
लुटने से सिर्फ़ दिल का असबाब
रोक लेना ॥
जब मुझको अंधा करने आओ तो
है गुज़ारिश ,
आँखों से गिरते मेरी कुछ
ख़्वाब रोक लेना ॥
जब मैं रहूँ न ज़िंदा और
मेरी याद आए ,
पीने से ख़ुद को दारू-जह्राब
रोक लेना ॥
पर्दानशीं हूँ फिर भी ऐ
काँच के मुहाफ़िज़ ,
मुझ पर हवस के फिंकते
तेज़ाब रोक लेना ॥
( आब =पानी, महताब =चाँद, असबाब =सामान, जह्राब =विषजल,
मुहाफ़िज़ =रक्षक )
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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