कि सिर फोड़कर या कि पैरों में पड़कर ।।
मुक़द्दर
से जीता यहाँ कौन लड़कर ?1।।
जिन्हें
मिलना है वो भी मिलकर रहेंगे ,
बिछड़ना
है जिनको रहेंगे बिछड़कर ।।2।।
हमेशा
नहीं रहते क़ाबिज़ वहाँ पर ,
गिरें
शाख़ से पत्ते पतझड़ में झड़कर ।।3।।
रहोगे
अगर रेगमालों में फिर तो ,
किसी
ना किसी दिन रहोगे रगड़कर ।।4।।
नदी
की तरह सीख ही लेना बहना ,
या
पोखर के जैसे ही रह जाना सड़कर ।।5।।
कि अपने हों जितने वही अपनी दुनिया ,
लिहाज़ा
न अपनों से रहना अकड़कर ।।6।।
वो
क्यों छटपटा छूटने को हो आतुर ,
मोहब्बत
ने जिसको रखा हो जकड़कर ?7।।
नहीं
कोई हाथों में रखता है ' हीरा ',
वो
जँचता है दरअस्ल ज़ेवर में जड़कर ।।8।।
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
No comments:
Post a Comment