Saturday, October 22, 2016

*मुक्त-मुक्तक : 864 - मैं तेरी राह तके बैठा हूँ ॥



रात–दिन इस ही जगह पर न थके बैठा हूँ ॥
कब से अपलक मैं तेरी राह तके बैठा हूँ ॥
चलके मत आ कि बस उड़के ही चला आ आगे ,
तेरे दीदार का प्यासा न छके बैठा हूँ ॥
( तके = देखते हुए , दीदार का = दर्शन का , छके = तृप्त )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...